मणिपुर में जारी जातीय हिंसा को आज एक साल पूरा हो गया है, लेकिन हिंसा के एक साल बाद भी राज्य में मैतेई और कुकी-ज़ोमी जनजाति के बीच तनाव जारी है। पिछले साल 3 मई को शुरू हुई इस जातीय हिंसा में अब तक 200 से ज्यादा लोग मारे जा चुके है। वहीं, 58 हजार से अधिक बेघर लोग राहत शिविरों में तकलीफों में रह रहें है।
राज्य की कानून-व्यवस्था की स्थिति इतनी खराब है कि जेड सुरक्षा के साथ भी राज्य के मुख्यमंत्री पिछले एक साल में कुकी-जोमी इलाकों में जानमाल के नुकसान का जायजा लेने नहीं जा पाए है। यहां समाज बिखर चुके हैं। दफ्तर हों या अस्पताल, कहीं भी सरकारी सिस्टम नहीं बचा है। सरकार के सर्कुलर के बावजूद सरकारी दफ्तरों से कर्मचारी गायब हैं। कुकी बहुल जिलों हों या मैतेई बहुल, सड़कों पर हथियारबंद लोग नजर आ जाएंगे। पूरा राज्य दो हिस्सों में बंटा है।
हालात यह है कि कुकी-जोमी जनजाति के लोग अब इंफाल घाटी में आने का कोई जोखिम नहीं उठाते, जबकि पहाड़ों में बसे मैतेई लोगों ने अपने घर-जमीन सबकुछ छोड़ दिया है। मणिपुर के कुल 16 जिलों में कुकी जनजातियां मुख्य रूप से चूराचांदपुर, कांगपोकपी, चंदेल, फेरजॉल और टेंगनौपाल जिलों की दक्षिणी पहाड़ियों में रहती हैं। वहीं, इंफाल घाटी के बिष्णुपुर, थौबल, इंफाल ईस्ट और इम्फाल वेस्ट में मैतेई का दबदबा है।
मणिपुर में गुरुवार को संदिग्ध उग्रवादी संगठन के सदस्यों ने चूराचांदपुर के सालबुंग गांव में स्थित एसबीआई शाखा को लूट लिया। एक अधिकारी के अनुसार घटना दोपहर 2 बजे की है। अभी इस सुनियोजित डकैती की जांच जारी है।
चूराचांदपुर: साढ़े तीन लाख लोग एक सरकारी अस्पताल के भरोसे
चूराचांदपुर में रहने वाले जे. बाइते (बदला हुआ नाम) पेशे से शिक्षक है, वो कहते है कि करीब साढ़े तीन लाख आबादी वाले चूराचांदपुर में केवल एक सरकारी अस्पताल है। अगर वहां इलाज नहीं होता तो लोगों को आइजोल जाना पड़ता है। जो साढ़े तीन सौ किमी दूर है, और प्राइवेट गाड़ियों से वहां पहुंचने में 8 से 10 घंटे लग जाते है। कैंसर जैसी गंभीर बीमारी से जूझ रहे लोगों का आइजोल तक पहुंचना बहुत मुश्किल है।
चिंता: लोगों के पास काम नहीं और चीजों की कीमतें दोगुनी हो गई हैं
मानवाधिकार कार्यकर्ता कहते है कि हिंसा से जनजातियों को काफी नुकसान हुआ है। हिंसा से पहले 30 हजार से अधिक कुकी लोग इंफाल में बसे हुए थे। उनके पक्के मकान थे, दुकानें थी लेकिन हिंसा में सबकुछ जलकर राख हो गए। ठीक इतनी ही संख्या में मैतेई लोगों को सबकुछ गंवाना पड़ गया। जो लोग रोजाना की दिहाड़ी से अपना खर्चा चलाते थे उनकी कमर टूट गई है। उनके पास काम नहीं है और चीजों की कीमत दोगुनी हो गई है।
दर्द: राहत कैंपों में रह रहे मरीजों का खर्च उठाने में कोई सक्षम नहीं
सबसे बड़ी चुनौती पुरानी बीमारी से पीड़ित लोगों के लिए उचित स्वास्थ्य देखभाल की है। सरकारी स्वास्थ्य योजना के बावजूद, कैंसर, मधुमेह आदि से पीड़ित लोगों को उचित इलाज नहीं मिल रहा है। इलाज मिलने पर भी काफी सारा पैसा पैसे अपनी जेब से खर्च करने पड़ते हैं। कई बार किसी व्यक्ति को ऑपरेशन जैसी स्थिति में चंदे का सहारा लेते हैं। लोगों का कहना है कि सरकार को स्वास्थ्य सुविधाओं के विस्तार पर काम करना चाहिए।
कार्रवाई: 11 गंभीर केस की जांच कर रही है CBI
मणिपुर हिंसा से जुड़े 11 गंभीर मामलों की जांच सीबीआई कर रही है। पिछले साल सुप्रीम कोर्ट में मणिपुर सरकार ने कहा था कि इस हिंसा से जुड़े 5,995 मामले दर्ज हुए और 6,745 लोगों को हिरासत में लिया है।
लापरवाही: कर्मचारी नहीं लौटे, सरकारी दफ्तरों में काम ठप
एक लाख से ज्यादा सरकारी कर्मचारी काम पर नहीं लौट रहे हैं जिससे परिवहन, बिजली, पर्यावरण, वन और जलवायु तथा शिक्षा विभागों के कामकाज भी ठप पड़ा है और लोगों को परेशानी हो रही है।